Tuesday, March 22, 2022

पुस्तक उपहार-2022


प्यारे बच्चों, 
विद्यालय में सत्र 2022-23 हेतु पुस्तक उपहार कार्यक्रम आरम्भ हो रहा है | 
पुस्तक उपहार कार्यक्रम के द्वारा आप अपनी पुरानी किताबें विद्यालय के पुस्तकालय में दे सकते है | ये पुस्तकें उन छात्रों को दी जायेंगी, जिनकी इनको आवश्यकता है | आप अपने इस महत्वपूर्ण कदम से किसी बच्चे की मदद करने के साथ ही वृक्षों एवं पर्यावरण की सुरक्षा भी कर सकते है | 
यह कार्यक्रम मार्च- से अप्रैल तक चलेगा | 
पुस्तक उपहार हेतु कुछ नियम दिए जा रहे है, जिनका पालन करके ही आप इस कार्यक्रम में सफलतापूर्वक भाग ले सकते सकते है | 

1) आप जिन पुस्तकों को विद्यालय के पुस्तकालय में देंगे, वे अच्छी स्थिति में हो, फटी हुई न हो | 
2) पाठ्यपुस्तक के साथ ही आप सन्दर्भ पुस्तकें भी दे सकते है | 
3) विद्यालय के प्रथम पाली के समयानुसार सुबह 8 से 1.20 तक आप पुस्तकें दे सकते है | 
4) आपको भी अगर किसी पुस्तक की आवश्यकता है तो, आप उपहार में दी गई पुस्तकों से ले सकते है | 
5) पुस्तकें देते समय COVID नियमों का पालन करें | 
6) पुस्तकें अत्यधिक पुरानी न हो | 

कृपया उन पुस्तकों को विद्यालय पुस्तकालय में न दे,जिनका छात्र उपयोग न कर सकें (अत्यधिक पुरानी एवं वे पुस्तकें जिनकी स्थिति उपयोग करने योग्य न हो) | 

मीरा पांडे

(पुस्तकालय अध्यक्ष)

Shaheed Diwas (23 MARCH) Remembering Shaheed Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru


Shaheed Diwas is observed on March 23 every year to mark the death anniversary of Indian freedom fighters Bhagat Singh, Shivaram Rajguru and Sukhdev Thapar.

On March 23, 1931, the three were hanged to death by the Britishers in the Lahore Central Jail in British India (now Pakistan). The valiant patriots were sentenced to death in the Lahore conspiracy case and ordered to be hanged on March 24, 1931. However, they were executed on March 23, 1931 at 7:30 pm, almost 11 hours before the scheduled time for the hanging.

Following the death of one of India's most prominent freedom fighters, Lala Lajpat Rai, in November 1928, the trio vowed to avenge Rai's killing. Rai, who led a non-violent protest against the Simon Commission, inspired many young Indians to join Indian independence movement against the Britishers. Rai had succumbed to injuries sustained during a lethal lathi charge ordered by British police officer James A Scott, who was infamous for his cruel behaviour.

With a motive to teach British forces a lesson, Singh, Rajguru and Sukhdev planned to execute Scott. Singh had publicly declared to execute Scott. However, the trio mistook British police officer John Saunders for Scott and allegedly fatally shot him. Following the shootout, Singh continued his freedom struggle. Meanwhile, the Britishers charged the three freedom fighters for Saunders' killing.

In April 1929, Singh along with his accomplice Batukeshwar Dutt, set off two explosive devices without hurting anyone inside the Central Legislative Assembly in Delhi. They, then, allowed themselves to be arrested, while shouting the famous freedom struggle slogan, "Inquilab Zindabad", or "Long live the revolution".

The trio's contribution in the Indian freedom struggle is invaluable. The brave sons of Mother India continue to inspire generations to fight for their rights and freedom. On their martyrdom day today, let's remember the sacrifices of our brave freedom fighters.

(From: Times Now News)

Tuesday, January 25, 2022

गणतंत्र दिवस-2022




1947 में देश को ब्रिट‍िश राज से स्‍वतंत्रता तो मिल गई थी, लेकिन उसके पास अपना संविधान नहीं था| 26 जनवरी 1950 को भारत को अपना संविधान मिला| इसी दिन भारतीय संविधान लागू हुआ और इसी के साथ भारत एक संप्रभु राज्‍य बन गया, जिसे गणतंत्र घोष‍ित किया गया | डॉ बीआर अंबेडकर ने संविधान की मसौदा समिति की अध्यक्षता की और इसे गणतंत्र घोष‍ित किया गया, इसलिये इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है| गणतंत्र दिवस समारोह का मुख्य आकर्षण परेड है जो राजपथ, दिल्ली से शुरू होती है और इंडिया गेट पर समाप्त होती है| इस दिन देश के राष्ट्रपति राजपथ, नई दिल्ली में झंडा फहराते हैं| इस दिन कल्‍चरल प्रोग्राम के साथ भारतीय सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना भी भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत, परेड और एयरशो के जरिये प्रदर्शित करते हैं|

26 जनवरी को ही क्यों लागू किया गया संविधान

26 जनवरी 1950 में इस दिन संविधान लागू किया गया था, जिसके कई कारण थे। देश स्वतंत्र होने के बाद 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान अपनाया था। वहीं, 26 जनवरी 1950 को संविधान को लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया। इस दिन भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया गया। 26 जनवरी को संविधान लागू करने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि सन् 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत की पूरी तरह से आजादी की घोषणा की थी।

सन् 1929 को पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में इंडियन नेशनल कांग्रेस के जरिये एक सभा का आयोजन किया गया था। जिसमें आम सहमति से इस बात का ऐलान किया गया कि अंग्रेजी सरकार, भारत को 26 जनवरी 1930 तक डोमिनियन स्टेटस का दर्जा दे। इस दिन पहली बार भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने तक 26 जनवरी को ही स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता था। 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज घोषित करने की तारीख को महत्व देने के लिए 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू किया गया और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस घोषित किया गया।

308 सदस्‍यों ने बनाया था संविधान

देश में आज जिस संविधान के अनुसार कार्य किया जा रहा है, उसका मसौदा डॉ. भारत रत्न बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने तैयार किया था जिन्हें भारतीय संविधान के वास्तुकार के रूप में जाना जाता है। कई सुधारों और बदलावों के बाद कमेटी के 308 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 हाथ से लिखे कानून की दो कॉपियों पर हस्ताक्षर किये, जिसके दो दिनों बाद 26 जनवरी को यह देश में लागू कर दिया गया। 26 जनवरी के महत्व को बनाए रखने के लिए उसी दिन भारत को एक लोकतांत्रिक पहचान दी गई थी। संविधान के लागू होने के बाद पहले से चले आ रहे अंग्रेजों का कानून Government of India Act (1935) को भारतीय संविधान के जरिये भारतीय शासन दस्तावेज के रूप में बदल दिया गया। इसलिए हर साल हम भारतवासी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते है।

सुबह 10.18 बजे गणतंत्र राष्ट्र बना भारत

भारत 26 जनवरी 1950 को सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर एक गणतंत्र राष्ट्र बना। उसके ठीक 6 मिनट बाद 10 बजकर 24 मिनट पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। इस दिन पहली बार डॉ. राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति के रूप में बग्गी पर बैठकर राष्ट्रपति भवन से बाहर निकले थे, जहां उन्होंने पहली बार सेना की सलामी ली थी और पहली बार उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया था। इस दिन हम भारतवासी तिरंगा फहराने, राष्ट्रगान करने के साथ-साथ कई कार्यक्रमों का या तो आयोजन करते हैं या फिर उसका हिस्सा बनते हैं।

एक सप्‍ताह का होता है गणतंत्र दिवस कार्यक्रम

गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम आम तौर पर 24 जनवरी से राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार पाने वाले बच्चों के नाम का ऐलान करने के साथ शुरू होता है। लेकिन इस बार यह 23 जनवरी को नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती से शुरू हो गया है। वहीं 25 जनवरी की शाम राष्ट्रपति देश के नाम संबोधन देते हैं। 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस का मुख्य कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

इस दौरान राजपथ पर परेड निकाली जाती है। 27 जनवरी को प्रधानमंत्री परेड में शामिल हुए एनसीसी कैडेट के साथ मुलाकात करते हैं। वहीं 29 जनवरी को रायसीना हिल्स पर बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस दौरान तीनों सेनाओं के बैंड शानदार धुन के साथ मार्च पास्ट करते हैं। इसी के साथ गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम खत्म होता है।


(साभार : इंडिया टुडे और नवभारत टाइम्स )



Monday, December 13, 2021

KVS Foundation Day-2021



The Kendriya Vidyalaya Sangathan (KVS) formerly chain of Central Schools is a system of central government schools in India that are authorized by the Ministry of Education (MoE), Government of India. The system was established on 15 December 1963 under the name ‘Central Schools’. Later the name was changed to Kendriya Vidyalaya. A uniform curriculum is followed by all Kendriya Vidyalayas all over India. 

The Kendriya Vidyalaya Sangathan provides a common syllabus and It also provides a common system of education to the children of transferable Central Government employees including Defence and Para-Military personnel. These schools have been operational for more than 50 years.

Wednesday, October 6, 2021

Indian Air Force Day

 


India observes Indian Air Force Day every year on October 8, on this day, the Air Force in India was officially raised as the supporting force of the Royal Air Force of the United Kingdom in 1932.
Indian Air Force Day is celebrated at Hindon Air Force Station, Ghaziabad, Uttar Pradesh. The celebrations are marked in the presence of the IAF chief and senior officials of the three-armed forces. 
On this day, the most crucial and vintage aircraft put up a magnificent show which is displayed in the open sky.

History of Indian Air Force Day:-

The Indian Air Force (‘Bharatiya Vayu Sena’) was established in the country on October 8, 1932, by the British Empire. The first operational squadron came into being in April 1933. it was only after the participation in World War II, that the Air Force in India came to be known as the Royal Indian Air Force.

Indian Air Force Day 2021: Significance and importance:-

The Indian Air Force (IAF) is the air arm and a crucial organ of the Indian armed forces which plays a vital role in the wars fought by the country. Its primary mission is to secure Indian airspace and conduct aerial activities during armed conflicts within nations.
The Indian Air Force has taken part in several wars since independence, including four wars with Pakistan and one with the People’s Republic of China. Air Force not only safeguards Indian territory and national interests from all threats but also provides support during natural calamities in the country. Hence, the day is celebrated to honour and recognise the selfless efforts of our jawans and the entire force.

Interesting facts about the Indian Air Force (IAF):-

1)The Indian Air Force (IAF) is ranked the fourth largest operational air force in the world. Only the US, China and Russia are ahead of India.

2)The motto of the Indian Air Force is ‘Nabham Sparsham Deeptham’, which literally means ‘Touch the Sky with Glory’. Interestingly, IAF has taken its motto from the eleventh chapter of the Bhagavad Gita. 

3)The Indian Air Force employs over 1,400 aircraft and about 170,000 personnel.

4) Hindon Air Force station, situated in Ghaziabad, Uttar Pradesh, is the largest airbase in entire Asia. It is also the 8th largest in the world.

5) IAF has always taken part in relief operations during natural calamities in the country, including the Gujarat cyclone (1998), the tsunami (2004) and floods in North India. However, IAF made a world record while rescuing civilians stranded during the Uttarakhand flash floods. The mission was named ‘Raahat’ during which the IAF rescued about 20,000 people.

6) IAF has also been an important part of various operations such as Operation Poomalai, Operation Vijay, Operation Meghdoot and more.

7) IAF even works with the United Nations in peacekeeping missions.

8) IAF has included a significant number of women fighter pilots, women navigators and women officers who provide their services to the Indian Air Force. Even the Rafale fleet of the IAF has a woman fighter pilot.

9) Hindustan Aeronautics Limited that was formed in 1948 is currently the largest defense firm in the public sector.

10) The Indian Government, in January 2002, granted the rank of Marshal of the Air Force to Arjan Singh, thus making him the first and the only Five-star officer with the Indian Air Force and ceremonial chief of the air force.

Friday, August 6, 2021

HIROSHIMA DAY

HIROSHIMA DAY
Hiroshima Day is observed every year on August 6 to promote peace politics and raise awareness of the effects of the bomb attack on Hiroshima. Hiroshima city was attacked by an atomic weapon that killed thousands of lives instantly on August 6, 1945. Today is the 76th anniversary of the atomic bombing of the Japanese city. It was the first city to be attacked by a nuclear bomb.

In 1945, the United Nations deployed a nuclear bomb to the city of Hiroshima. This wiped out 39 percent of the civilians in the city. The US created two atomic bombs named ‘The Little Boy’ dropped in the city of Hiroshima and ‘The Fat Man’ in the city of Nagasaki on August 6 and 9 respectively.

(India Today)

Saturday, July 31, 2021

INDIA TOKYO OLYMPIC-2020 #CHEER 4 INDIA CAMPAIGN

Tokyo 2020 Olympics is scheduled from 23rd July till 8th August 2021. Ministry of Youth Affairs and Sports (MYAS) and Indian Olympic Association (IOA) have jointly taken an initiative to boost the morale of our Indian contingent participating in Tokyo 2020 by organizing a nationwide campaign to sensitize people of the Nation about Olympics, rich and vibrant sporting culture in India. Kendriya Vidyalaya Janakpuri has taken an initiative to cheer and motivate Indian Athletes participating in Tokyo Olympic.








 

Monday, December 14, 2020

Kendriya Vidyalaya Sangathan Foundation Day 2020

Kendriya Vidyalaya Sangathan is the Premier Organization in the Field of School Education. Kendriya Vidyalaya Sangathan were established in 15 December 1963 with the sole purpose of offering quality education to the children of transferable central government employees, including those in the defence and paramilitary services. The chain began with about 20 schools over five decades ago.

The schools are run by the Kendriya Vidyalaya Sangathan (KVS), an autonomous organisation under the Ministry of Education and are considered the best schools in the country. Around 95% examinees from these schools passed the Class 10 and 12 board exams for the past five years – a significantly better pass-percentage than the average of 82% for all schools affiliated to the board in the same period.

Their reputation attracts even those not on the central government or armed forces. To cater to the huge demand, the government decided to start a second shift in some of the schools from 2004-05. At present, 66 KVs are running in double shift. 

Schools teaching children from border or disturbed areas such as Ladakh, Kargil, the north eastern states, Himachal Pradesh, Chhattisgarh and Jharkhand.

As KVS celebrating its 57th Foundation Day, on this occasion some key facts about KVS are-

FACTS-

  • Schools- 1245
  • Regions- 25
  • ZIET's- 5
  • Employees- 48314 
  • Students- 1388899

Four KV's from all over India are Ranked Top 10 under India's best Government Day Schools (Education World Report 2020).

  • Kendriya Vidyalaya (KV), Pattom, Thiruvananthapuram (Kerala), ranked 1
  • Kendriya Vidyalaya-IIT Madras, Chennai Ranked 2
  • KV-IIT Bombay Ranked 4
  • KV, Cochin Ranked 6

Tuesday, November 17, 2020

Tuesday, November 10, 2020

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस 2020

स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती को हर साल 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को हुआ था। वे 15 अगस्त 1947 से 2 फरवरी 1958 तक शिक्षा मंत्री रहे। 
एक सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद केवल एक विद्वान नहीं थे, बल्कि शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध थे।


राष्ट्रीय शिक्षा दिवस का इतिहास- 


मौलाना सैय्यद अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन अहमद बिन खैरुद्दीन अल-हुसैनी आज़ाद एक विद्वान और स्वतंत्रता कार्यकर्ता थे और लोकप्रिय रूप से मौलाना आज़ाद के रूप में जाने जाते थे। अपने कार्यकाल के दौरान, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक थे जिन्होंने एक राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली की स्थापना की। इसलिए, उनका प्राथमिक ध्यान मुफ्त प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने पर था। एक शिक्षाविद् और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उनके योगदान के लिए 1992 में, उन्हें भारत रत्न - देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया गया।


राष्ट्रीय शिक्षा दिवस का महत्व-


भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की नींव में उनका योगदान उल्लेखनीय था | उनका दृढ़ विश्वास था कि प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा में व्यक्त किया जाना चाहिए। 1949 में उन्होंने आधुनिक विज्ञान में जानकारी प्रदान करने के महत्व पर ध्यान केंद्रित किया। वह एक स्वतंत्रता सेनानी थे और ब्रिटिश सरकार की आलोचना करने के लिए अल-हिलाल नामक उर्दू में एक साप्ताहिक पत्रिका शुरू की।



Saturday, August 15, 2020

स्वतंत्रता दिवस


Independence Day 2020: Sudarsan Pattnaik pays tribute to corona ...
(चित्र:सुदर्शन पटनायक)

न चाहूँ मान दुनिया में

न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना|
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना||

करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख|
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना||

लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी|
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना||

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की|
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना||

लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन|
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना||

नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम|
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना||

(राम प्रसाद बिस्मिल)

स्वतंत्रता दिवस का इतिहास:

यूरोपीय व्यापारियों ने 17वीं सदी से ही भारतीय उपमहाद्वीप में पैर जमाना आरम्भ कर दिया था। अपनी सैन्य शक्ति में बढ़ोतरी करते हुए ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 18वीं सदी के अन्त तक स्थानीय राज्यों को अपने वशीभूत करके अपने आप को स्थापित कर लिया था. 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत सरकार अधिनियम 1858 के अनुसार भारत पर सीधा आधिपत्य ब्रितानी ताज (ब्रिटिश क्राउन) अर्थात ब्रिटेन की राजशाही का हो गया।

दशकों बाद नागरिक समाज ने धीरे-धीरे अपना विकास किया और इसके परिणामस्वरूप 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई एन सी) निर्माण हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद का समय ब्रितानी सुधारों के काल के रूप में जाना जाता है, जिसमें मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार गिना जाता है| लेकिन इसे भी रोलेट एक्ट की तरह दबाने वाले अधिनियम के रूप में देखा जाता है, जिसके कारण स्वरुप भारतीय समाज सुधारकों द्वारा स्वशासन का आवाहन किया गया। इसके परिणामस्वरूप महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों तथा राष्ट्रव्यापी अहिंसक आंदोलनों की शुरूआत हो गयी।

1930 के दशक के दौरान ब्रितानी कानूनों में धीरे-धीरे सुधार जारी रहे, परिणामी चुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की|अगला दशक काफी राजनीतिक उथल पुथल वाला रहा| द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की सहभागिता, कांग्रेस द्वारा असहयोग का अन्तिम फैसला और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा मुस्लिम राष्ट्रवाद का उदय। 1947 में स्वतंत्रता के समय तक राजनीतिक तनाव बढ़ता गया। इस उपमहाद्वीप के आनन्दोत्सव का अंत भारत और पाकिस्तान के विभाजन के रूप में हुआ।

भारत में स्वतंत्रता दिवस का महत्व:

भारत में स्वतंत्रता दिवस प्रतीक नई दिल्ली का लाल किला है जहां 15 अगस्त 1947 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने तिरंगा फहराया था। यह परंपरा आज भी जारी है और इस दिन प्रधानमंत्री लाल किले से तिरंगा फहराने के साथ ही देश को संबोधित करते हैं।

15 अगस्त के बारे में रोचक तथ्य:

1. 15 अगस्त 1947 को जब भारत को आजादी हासिल हुई उस वक्त भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जश्न का हिस्सा नहीं थे। क्योंकि उस दौरान वो बंगाल में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच हो रही सांप्रदायिक हिंसा को रोकने का काम कर रहे थे।

2. 15 अगस्त को भारत के अलावा तीन अन्य देशों को भी आजादी मिली थी। इनमें दक्षिण कोरिया जापान से 15 अगस्त, 1945 को आज़ाद हुआ। ब्रिटेन से बहरीन 15 अगस्त, 1971 को और फ्रांस से कांगो 15 अगस्त, 1960 को आजाद हुआ था।

3. जिस दिन भारत आजाद हुआ यानि 15 अगस्त को उस दिन तक भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा पूर्ण रुप से नहीं बनी थी, इसका फैसला 17 अगस्त को को रेडक्लिफ लाइन की घोषणा से हुआ।

4. देश भले ही 15 अगस्त को आजाद हो गया था, लेकिन तक तक हमारे पास अपना कोई राष्ट्र गान नहीं था, हालांकि रवींद्रनाथ टैगौर ‘जन-गण-मन’ लिख चुके थे, लेकिन इसे 1950 में इसे राष्ट्र गान का दर्जा मिला।

5. लार्ड माउंटबेटन ने भारत को इसलिए आजाद कराया क्योंकि इसी दिन जापान की सेना ने उनकी अगुवाई में ब्रिटेन के सामने आत्‍मसमर्पण कर दिया था। ऐसे में लार्ड माउंटबेटन ने निजी तौर पर भारत की स्‍वतंत्रता के लिए 15 अगस्‍त का दिन तय किया।

6. आपको जानकर हैरानी होगी की 15 अगस्त 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन अपने कार्यालय में काम कर रहे थे, दोपहर को नेहरु ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल की सूची सौंपी और उसके बाद इंडिया गेट के पास एक सभा को संबोधित किया।

7. जिस दिन भारत आजाद हुआ यानि की 15 अगस्त 1947 को, 1 रुपया 1 डॉलर के बराबर था और सोने का भाव 88 रुपए 62 पैसे प्रति 10 ग्राम था।

8. भारत भले ही आजाद हो चुका था, लेकिन उस दौरान वर्तमान राज्य गोवा भारत का हिस्सा नहीं था। उस दौरान गोवा पुर्तगालियों के अंडर में आता था, 19 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने गोवा को पुर्तगालियों से आजाद करवाया था।

हमारे स्वतंत्रता सेनानी:

भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों लोगों ने भाग लिया था लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे जो एक नई प्रतीक या प्रतिमा के साथ उभरे|आजादी के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन का त्याग किया और इन्हीं लोगों के कारण हम आज स्वतंत्र देश में रहने का आनंद ले रहे हैं|

हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के लिए जीवन, परिवार, संबंध और भावनाओं से भी ज्यादा महत्वपूर्ण था हमारे देश की आजादी| इस पूरी लड़ाई में काई व्यक्तित्व उभरे, कई घटनाएं हुई, इस अद्भुत क्रांति में असंख्य लोग मारे गए, घायल हुए| अपने सम्मान और गरिमा के लिए हर कोई अपने देश के लिए मौत को गले लगाने का फैसला नहीं कर सकता है| आइये कुछ ऐसे महानायकों के बारे में अध्ययन करेंगे जिन्होंने आजादी दिलाने में मुख्य भूमिका निभाई थी.

1. मंगल पांडे:

1857 की क्रांति के इस महानायक का रौद्र ...

जन्म: 19 जुलाई, 1827
जन्म स्थान: बलिया, उत्तर प्रदेश
निधन: 8 अप्रैल 1857
म्रत्यु का स्थान: बैरकपुर, पश्चिम बंगाल

मंगल पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक गांव नगवा में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था| उनके पिता का नाम 'दिवाकर पांडे' तथा माता का नाम 'अभय रानी' था| वे सन 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए थे| वे बैरकपुर की सैनिक छावनी में “34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” की पैदल सेना में एक सिपाही थे| यहीं पर गाय और सूअर की चर्बी वाले राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ| 

जिससे सैनिकों में आक्रोश बढ़ गया और परिणाम स्वरुप 9 फरवरी 1857 को 'नया कारतूस' को मंगल पाण्डेय ने इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया| 29 मार्च सन् 1857 को अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन भगत सिंह से उनकी राइफल छीनने लगे और तभी उन्होंने ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया साथ ही अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को भी मार डाला| इस कारण उनको 8 अप्रैल, 1857 को फांसी पर लटका दिया गया| मंगल पांडे की मौत के कुछ समय पश्चात प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो गया था जिसे 1857 का विद्रोह कहा जाता है|

2. भगत सिंह

Bhagat Singh - Political Activist - Biography
(Biography.com)
जन्म: 28 सितंबर 1907
जन्म स्थान: लायलपुर ज़िले के बंगा, पंजाब
निधन: 23 मार्च 1931
मृत्यु का स्थान: लाहौर जेल में फांसी


शहीद भगत सिंह पंजाब के रहने वाले थे| उनके पिता का नाम 'किशन सिंह' और माता का नाम 'विद्यावती' था|  वे भारत के सबसे छोटे स्वतंत्रता सेनानी थे| वह सिर्फ 23 वर्ष के थे जब उन्होंने अपने देश के लिए फासी को गले लगाया था| भगत सिंह पर अराजकतावादी और मार्क्सवादी विचारधाराओं का काफी प्रभाव पड़ा था| 
लाला लाजपत राय की मौत ने उनको अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए उत्तेजित किया था| उन्होंने इसका बदला ब्रिटिश अधिकारी जॉन सॉंडर्स की हत्या करके लिया| भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ केंद्रीय विधान सभा या असेंबली में बम फेंकते हुए क्रांतिकारी नारे लगाए थे| उनपर 'लाहौर षड़यंत्र' का मुकदमा चला और 23 मार्च, 1931 की रात भगत सिंह को फाँसी पर लटका दिया गया|

3. महात्मा गांधी

(www.khabar.ndtv.com)

जन्म: 2 अक्टूबर, 1869
जन्म स्थान: पोरबंदर, काठियावाड़ एजेंसी (अब गुजरात)
निधन: 30 जनवरी 1948
मृत्यु का स्थान: नई दिल्ली


महात्मा गांधी जी को राष्ट्रीय पिता और बापू जी कह कर भी बुलाया जाता है| उनके पिता का नाम 'करमचंद्र गाँधी' और माता का नाम 'पुतलीबाई' था| महात्मा गांधी को भारत के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ कुछ लोगों में से एक माना जाता है जिन्होंने दुनिया को बदल दिया| उन्होंने सरल जीवन और उच्च सोच जैसे मूल्यों का प्रचार किया| 

उनके सिद्धांत थे सच्चाई, अहिंसा और राष्ट्रवाद. गांधी ने सत्याग्रह का नेतृत्व किया, हिंसा के खिलाफ आंदोलन, जिसने अंततः भारत की आजादी की नींव रखी| उनके जीवनभर की गतिविधियों में किसानों, मजदूरों के खिलाफ भूमि कर और भेदभाव का विरोध करना शामिल हैं| वे अपने जीवन के अंत तक अस्पृश्यता (untouchability) के खिलाफ लड़ते रहे| 30 जनवरी, 1948 को नई दिल्ली में नाथुरम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी|

जिस प्रकार सत्याग्रह, शांति व अहिंसा के रास्तों पर चलते हुए महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था और इसका कोई ऐसा दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में कही भी देखने को नहीं मिलता है|

4. पंडित जवाहरलाल नेहरू


जन्म: 14 नवम्बर, 1889
जन्म स्थान: इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
निधन: 27 मई, 1964
मृत्यु का स्थान: दिल्ली


पंडित जवाहरलाल नेहरू को चाचा नेहरू और पंडित जी के नाम से भी बुलाया जाता है| उनके पिता का नाम 'पं. मोतीलाल नेहरू' और माता का नाम 'श्रीमती स्वरूप रानी' था| वह भारतीय स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी के साथ सम्पूर्ण ताकत से लड़े, असहयोग आंदोलन का हिस्सा रहे| वह एक बैरिस्टर और भारतीय राजनीति में एक केन्द्रित व्यक्ति थे| आगे चलकर वे राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने| 

बाद में वह उसी दृढ़ विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन में गांधीजी के साथ जुड़ गए| भारतीय स्वतंत्रता के लिए 35 साल तक लड़ाई लड़ी और तकरीबन 9 साल जेल भी गए| 15 अगस्त, 1947 से 27 मई, 1964 तक पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधान मंत्री बने थे| उन्हें आधुनिक भारत के वास्तुकार के नाम से भी जाना जाता है|

5. चंद्रशेखर आजाद

(www.m.navodayatimes.in.com)

जन्म: 23 जुलाई 1906
जन्म स्थान: भाबरा, अलीराजपुर, मध्य प्रदेश
निधन: 27 फरवरी 1931
मृत्यु का स्थान: अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश


चंद्रशेखर आजाद का पूरा नाम पंडित चंद्रशेखर तिवारी था और उन्हें आजाद कहकर भी बुलाया जाता था| उनके पिता का नाम 'पंडित सीताराम तिवारी' और माता का नाम 'जाग्रानी देवी' था| वे 14 वर्ष की आयु में बनारस गए और वहां एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की| वहीं पर उन्होंने कानून भंग आंदोलन में योगदान भी दिया था| वे एक महान भारतीय क्रन्तिकारी थे| उनकी उग्र देशभक्ति और साहस ने उनकी पीढ़ी के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया|  चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह के सलाहकार थे और उन्हें भारत के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है| 

1920-21 के वर्षों में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े, भारतीय क्रन्तिकारी, काकोरी ट्रेन डकैती (1926), वाइसराय की ट्रैन को उड़ाने का प्रयास (1926), लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी की (1928), भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्रसभा का गठन भी किया था| जब वे जेल गए थे वहां पर उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को उनका निवास बताया था| उनकी मृत्यु 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में हुई थी|

6. सुभाष चंद्र बोस

(www.newsstate.com)

जन्म: 23 जनवरी 1897
जन्म स्थान: कटक (ओड़िसा)
निधन: 18 अगस्त 1945

सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें नेताजी के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय राष्ट्रवादी थे जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी| उनके पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और माता का नाम 'प्रभावती' था| वे 1920 के अंत तक राष्ट्रीय युवा कांग्रेस के बड़े नेता माने गए और सन् 1938 और 1939 को वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने| उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक (1939- 1940) नामक पार्टी की स्थापना की| 

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ जापान की सहायता से भारतीय राष्ट्रीय सेना “आजाद हिन्द फ़ौज़” का निर्माण किया| 05 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने “सुप्रीम कमांडर” बन कर सेना को संबोधित करते हुए “दिल्ली चलो” का नारा लागने वाले सुभाष चन्द्र बोस ही थे| 18 अगस्त 1945 को टोक्यो (जापान) जाते समय ताइवान के पास नेताजी का एक हवाई दुर्घटना में निधन हुआ बताया जाता है, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया था इसलिए आज भी उनकी मृत्यु एक रहस्य है|

7. बाल गंगाधर तिलक

(www.culturalindia.net.com)

जन्म: 23 जुलाई, 1856
जन्म स्थान: रत्नागिरी, महाराष्ट्र
निधन: 1 अगस्त, 1920
मृत्यु का स्थान: मुंबई

उनका पूरा नाम लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक था| उनके पिता का नाम 'श्री गंगाधर रामचंद्र तिलक' और माता का नाम 'पारवतिबाई' था| वे भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी थे| भारत में पूर्ण स्वराज की माँग उठाने वाले यह पहले नेता थे| स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनके नारे ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूँगा’ ने लाखों भारतियों को प्रेरित किया| 

ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें 'अशांति का जनक' ‘Father of the Unrest' कहा. उन्हें 'लोकमान्य' शीर्षक दिया गया, जिसका साहित्यिक अर्थ है 'लोगों द्वारा सम्मानित'|

केसरी में प्रकाशित उनके आलेखों से पता चलता है कि वह कई बार जेल गए थे| लोकमान्य तिलक ने जनजागृति का कार्यक्रम पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव तथा शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया था| इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंगरेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया| 1 अगस्त,1920 को मुम्बई में उनका निधन हो गया था|

 जिनके कारण ये भारत आजाद दिखाई देता है,
अमर तिरंगा उन बेटों की याद दिखाई देता है|
उनका नाम जुबाँ पर लेकर पलकों को झपका लेना,
उनकी यादों के पत्थर पर दो आँसू टपका देना|

जो धरती में मस्तक बोकर चले गये,
दाग़ गुलामी वाला धोकर चले गये|
मैं उनकी पूजा की खातिर जीवन भर गा सकता हूँ |
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ | |

(हरिओम पंवार)

Wednesday, August 5, 2020

Essay Competition on Aatmanirbhar Bharat

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Friday, July 24, 2020

Kargil Vijay Diwas Quiz

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कारगिल विजय दिवस:-


शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले

उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा,
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा|

चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन के गुलचीं को,
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा|

ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल,
पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा|

जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़,
न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा|

वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है,
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा|

शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले,
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा|

कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे,
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा|

रचनाकाल : 1916
जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’


19th anniversary of Kargil Vijay Diwas being celebrated | The Dispatch

भारत ने 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध (Kargil War) में विजय हासिल की थी| कारगिल युद्ध में भारत की जीत के बाद से हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) मनाया जाता है| यह दिन कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान हेतु मनाया जाता है| 

कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 में कश्मीर के कारगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है| कारगिल युद्ध (Kargil War) लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ| भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर हमला किया और धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया| 

यह युद्ध ऊंचाई वाले इलाके पर हुआ और दोनों देशों की सेनाओं को लड़ने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा| पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ सेना की ओर से की गई कार्रवाई में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए तो करीब 1363 घायल हुए थे| इस लड़ाई में पाकिस्तान के करीब तीन हजार सैनिक मारे गए थे, मगर पाकिस्तान मानता है कि उसके करीब 357 सैनिक ही मारे गए थे| 

कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि : कारगिल युद्ध जो कारगिल संघर्ष के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में मई के महीने में कश्मीर के कारगिल जिले से प्रारंभ हुआ था।

इस युद्ध का कारण था बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों व पाक समर्थित आतंकवादियों का लाइन ऑफ कंट्रोल यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर प्रवेश कर कई महत्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लेह-लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क का नियंत्रण हासिल कर सियाचिन-ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमजोर कर हमारी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा पैदा करना।

पूरे दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध में भारतीय थलसेना व वायुसेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों को मार भगाया था। स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया जाता है।

हिमालय से ऊँचा था साहस उनका : इस युद्ध में हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हो गए, जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है।

इन रणबाँकुरों ने भी अपने परिजनों से वापस लौटकर आने का वादा किया था, जो उन्होंने निभाया भी, मगर उनके आने का अन्दाज निराला था। वे लौटे, मगर लकड़ी के ताबूत में। उसी तिरंगे मे लिपटे हुए, जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने उठाई थी। जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जाँबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था।

भारत के वीर सपूत :

कैप्टन विक्रम बत्रा: ‘ये दिल माँगे मोर’ - हिमाचलप्रदेश के छोटे से कस्बे पालमपुर के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा उन बहादुरों में से एक हैं, जिन्होंने एक के बाद एक कई सामरिक महत्व की चोटियों पर भीषण लड़ाई के बाद फतह हासिल की थी। यहाँ तक कि पाकिस्तानी लड़ाकों ने भी उनकी बहादुरी को सलाम किया था और उन्हें ‘शेरशाह’ के नाम से नवाजा था। 

मोर्चे पर डटे इस बहादुर ने अकेले ही कई शत्रुओं को ढेर कर दिया। सामने से होती भीषण गोलीबारी में घायल होने के बावजूद उन्होंने अपनी डेल्टा टुकड़ी के साथ चोटी नं. 4875 पर हमला किया, मगर एक घायल साथी अधिकारी को युद्धक्षेत्र से निकालने के प्रयास में माँ भारती का लाड़ला विक्रम बत्रा 7 जुलाई की सुबह शहीद हो गया। अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को अपने अदम्य साहस व बलिदान के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैनिक पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

कैप्टन अनुज नायर : 17 जाट रेजिमेंट के बहादुर कैप्टन अनुज नायर टाइगर हिल्स सेक्टर की एक महत्वपूर्ण चोटी ‘वन पिंपल’ की लड़ाई में अपने 6 साथियों के शहीद होने के बाद भी मोर्चा सम्भाले रहे। गम्भीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अकेले ही दुश्मनों से लोहा लिया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना इस सामरिक चोटी पर भी वापस कब्जा करने में सफल रही। इस वीरता के लिए कैप्टन अनुज को मरणोपरांत भारत के दूसरे सबसे बड़े सैनिक सम्मान ‘महावीर चक्र’ से नवाजा गया।

मेजर पद्मपाणि आचार्य : राजपूताना राइफल्स के मेजर पद्मपाणि आचार्य भी कारगिल में दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए। उनके भाई भी द्रास सेक्टर में इस युद्ध में शामिल थे। उन्हें भी इस वीरता के लिए ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय : 1/11 गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय की बहादुरी की इबारत आज भी बटालिक सेक्टर के ‘जुबार टॉप’ पर लिखी है। अपनी गोरखा पलटन लेकर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में ‘काली माता की जय’ के नारे के साथ उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में लड़ते हुए मनोज पांडेय ने दुश्मनों के कई बंकर नष्ट कर दिए।

गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद मनोज अंतिम क्षण तक लड़ते रहे। भारतीय सेना की ‘साथी को पीछे ना छोडने की परम्परा’ का मरते दम तक पालन करने वाले मनोज पांडेय को उनके शौर्य व बलिदान के लिए मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

कैप्टन सौरभ कालिया : भारतीय वायुसेना भी इस युद्ध में जौहर दिखाने में पीछे नहीं रही, टोलोलिंग की दुर्गम पहाडियों में छिपे घुसपैठियों पर हमला करते समय वायुसेना के कई बहादुर अधिकारी व अन्य रैंक भी इस लड़ाई में दुश्मन से लोहा लेते हुए शहीद हुए। सबसे पहले कुर्बानी देने वालों में से थे कैप्टन सौरभ कालिया और उनकी पैट्रोलिंग पार्टी के जवान। घोर यातनाओं के बाद भी कैप्टन कालिया ने कोई भी जानकारी दुश्मनों को नहीं दी।

स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा : स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा का विमान भी दुश्मन गोलीबारी का शिकार हुआ। अजय का लड़ाकू विमान दुश्मन की गोलीबारी में नष्ट हो गया, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पैराशूट से उतरते समय भी शत्रुओं पर गोलीबारी जारी रखी और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए।

फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता : इस युद्ध में पाकिस्तान द्वारा युद्धबंदी बनाए गए। वीरता और बलिदान की यह फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती। भारतीय सेना के विभिन्न रैंकों के लगभग 30,000 अधिकारी व जवानों ने ऑपरेशन विजय में भाग लिया।

यह युद्ध हाल के ऊँचाई पर लड़े जाने वाले विश्व के प्रमुख युद्धों में से एक है। सबसे बड़ी बात यह रही कि दोनों ही देश परमाणु हथियारों से संपन्न हैं। पर कोई भी युद्ध हथियारों के बल पर नहीं लड़ा जाता है, युद्ध लड़े जाते हैं साहस, बलिदान, राष्ट्रप्रेम व कर्त्तव्य की भावना से और हमारे भारत में इन जज्बों से भरे युवाओं की कोई कमी नहीं है।

कारगिल युद्ध भारतीय सेना के साहस और जांबाजी का ऐसा उदाहरण है जिस पर हर देशवासी को गर्व होना चाहिए| मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर बलिदानी भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर इनकी यादें हमारे दिलों में हमेशा- हमेशा के लिए बसी रहेंगी|

जय हिन्द | 

Wednesday, July 15, 2020

Sports Quiz


All students will Participate in sports quiz,it is compulsory for all students from class VI-XII. Children who will score 80% get certificate from KVS Regional office Delhi. 


Links will be available open from 8 am.-5 pm. 


Sports Quiz for class VI-VIII 

Sports Quiz for class IX-XII



Click the image given below and use study material for Sports Quiz.





Sunday, July 5, 2020

गुरु पूर्णिमा


प्रतिवर्ष आषाढ़ मास पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है| इस पर्व का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है| ये दिन गुरुओं समर्पित है| इसी दिन सभी ग्रंथों की रचना करने वाले महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था, इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है| 

गुरु के महत्व को बताते हुए संत कबीर का एक दोहा बड़ा ही प्रसिद्ध है। जो इस प्रकार है - 

गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥

इसके अलावा संस्कृत के प्रसिद्ध श्लोक में गुरु को परम ब्रह्म बताया गया है -
  
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। 
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

महत्त्व :- महर्षि वेद व्यास संस्कृत के महान विद्वान् थे| महाभारत जैसे महाकाव्य, 18 पुराणों की रचना एवं वेदों का विभाजन व्यास जी द्वारा ही किया गया| गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं की पूजा करने का विशेष महत्व है| पुराने समय में गुरुकुल में रहने वाले छात्र गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरुओं की विशेष पूजा-अर्चना किया करते थे| इस दिन केवल गुरु ही नहीं बल्कि घर में सभी बड़ों जैसे माता-पिता, भाई-बहन आदि का आशीर्वाद लिया जाता है| 

शैक्षिक ज्ञान एवं साधना का विस्तार करने के उद्देश्य से सृष्टि के आरम्भ से ही गुरु-शिष्य परंपरा का जन्म हुआ। सर्वप्रथम श्रीपरमेश्वर ने नारायण का विष्णु रूप में नामकरण किया और उन्हें 'ॐ'कार रूपी महामंत्र का जप करने की आज्ञा दी। बाद में ब्रह्मा को अज्ञानता से मुक्त करने के लिए परमेश्वर ने अपने हृदय से योगियों के सूक्ष्मतत्व श्रीरूद्र को प्रकट किया जिन्होंने ब्रह्मा के अंतर्मन को विशुद्ध करने के लिए 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जप करने का ज्ञान देकर ब्रह्मा का मोहरूपी अन्धकार दूर किया। अतः अपने शिष्य को 'तमसो मा ज्योतिगर्मय' अंधकार की बजाय प्रकाश की ओर ले जाना ही गुरुता है। 

संत तुलसीदास ने कहा है कि-

 'गुरु बिन भवनिधि तरइ न कोई। जो बिरंचि संकर सम होई।। 

अर्थात- गुरु की कृपा प्राप्ति के बगैर जीव संसार सागर से मुक्त नहीं हो सकता चाहे वह ब्रह्मा और शंकर के समान ही क्यों न हो। 


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